श्री 5 पद्मावतीपुरी धाम के मंदिर
अनंत श्री प्राणनाथ जी मंदिर का मंदिर - मुक्तिपीठ जागनी रास का मिलमिलावा श्री गुम्मट जी मंदिर
अनंत श्री प्राणनाथ जी मंदिर का मंदिर - मुक्तिपीठ जागनी रास का मिलमिलावा श्री गुम्मट जी मंदिर
इस मंदिर का निर्माण अनंत श्री विभूषित प्राणनाथ जी के समय सन् 1690-93 ई. में महाप्रभु के परमशिष्य महाराजा श्री छत्रसाल द्वारा कराया गया। महाप्रभु कभी इसी मंदिर में चिंतन करते थे और यहीं सन् 1694 ई. में ब्रह्मलीन हुये। निजानंद संप्रदाय में श्री प्राणनाथ जी के वाङ्मय स्वरूप ब्रह्मवाणी श्री तारतम सागर की अष्टप्रहर सेवा-पूजा होती है। अतः यहाँ सिंहासन पर ब्रह्मवाणी विराजमान है और उस पर सच्चिदानंद स्वरूप अनादि अक्षरातीत श्री कृष्ण की मुरली, मुकुट और वागे वस्त्रादि का श्रृंगार है। निजानंद दर्शन में महाप्रभु प्राणनाथ जी के मुखारबिन्द से अवतरित 'श्री तारतम सागर' में ही पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की उपस्थिति मान्य है। श्री कृष्ण जी की गोकुल लीला एवं वृंदावन की रास लीला परमधाम से अवतरित 12000 सखियों के साथ ही की गई-मान्य है। इसी प्रकार महाप्रभु प्राणनाथ ने सुन्दरसाथ को 'तारतम सागर' सौंपकर कहा था कि तुम मुझे सदा इस ग्रंथ में पाओगे। इन दोनों स्मृति चिन्हों: तारतम सागर ग्रंथ एवं उसके साथ वंशी, मुकुट, वस्त्रादि को मिलाकर एक संपूर्ण विग्रह है, जिसमें महाप्रभु प्राणनाथ अर्थात पूर्णब्रह्म परमात्मा श्री कृष्ण की स्मृति विद्यमान है। क्योंकि महाप्रभु प्राणनाथ आत्म-जागृत अवस्था में स्वयं श्री कृष्णवत् हो गये थे इसलिए इस रसमय स्वरूप में हम महाप्रभु प्राणनाथ एवं अक्षरातीत परब्रह्म श्री कृष्ण को एक ही रूप में पाते हैं । इस भूमि को रास की पावन भूमि एवं ब्रजमण्डल
की लीलाओं से जोड़कर स्मरण किया जाता है । अतः भक्तों में यह में यह पूर्ण विश्वास है कि यहाँ पूर्णब्रह्म श्री कृष्ण एवं महाप्रभु प्राणनाथ एक ही स्वरूप में साक्षात उपस्थित हैं । इसलिए यहाँ सिर्फ पूजा नहीं अष्टप्रहर की सेवा-पूजा की जाती है, जिसमें यह माना जाता है कि प्रातः काल से मध्य रात्रि तक हम अपने प्रीतम की सेवा और पूजा दोनों कर रहे हैं । कृष्ण भक्ति परंपरा के समस्त त्यौहार यहाँ इस भाव से मनाये जाते हैं, जैसे कि श्री कृष्ण स्वयं सखियों के साथ हर उत्सव और पर्व में शामिल हैं । इस मंदिर में कुछ देर शांत बैठकर उन स्मृतियों में सराबोर होकर अविस्मरणीय अनुभूति प्राप्त की जा सकती है ।
धर्मसंसद श्री बंगला जी दरबार
श्री बंगला जी मंदिर की स्थापना सन् 1683 ई. में अनन्त श्री प्राणनाथ जी द्वारा ही वर्तमान पन्ना नगर के आदि निर्माण के रूप में हुई थी । महाप्रभु के समय में यह श्री बंगला जी मंदिर काष्ठ एवं तृणाच्छादित था, जिसे महाराजा श्री छत्रसाल के पौत्र महाराज सभासिंह ने वर्तमान मूर्तरूप में निर्मित कराया । समय-समय पर महाप्रभु के शिष्य मंडल (सुंदरसाथ) ने अपने तन, मन और धन से इसे आधुनिक रूप प्रदान किया । श्री बंगला जी मंदिर में ही महाप्रभु प्राणनाथ अपने शिष्य समूह को ज्ञानोपदेश देते थे । अस्तु, यह संसद भवन के नाम से विख्यात है । उसी परंपरानुसार आज भी इस मंदिर में ब्रह्मवाणी की चर्चा, भजन-कीर्तन व पूजन होता है । इस मंदिर में चंदन की लकड़ी का वह आसन (तख्त) आज भी मौजूद है जिस पर आसीन होकर श्री प्राणनाथ जी धर्म उपदेश दिया करते थे । उसी ऐतिहासिक आसन पर उनके मुखारबिन्द से जोश द्वारा अवतरित 'तारतम सागर' ग्रंथ पर मुरली, मुकुट, वस्त्रादि धारण कराकर उनके वाड्मय स्वरूप की अष्टप्रहर पूजा अर्चना होती है। यह मंदिर पूर्णब्रह्म परमात्मा का दरबार है, जहाँ भक्त अपनी विनय अर्जी मन ही मन निवेदित करते हैं । जन विश्वास है कि यहाँ से कोई निराश नहीं जाता । सच्चिदानंद स्वरूप श्रीजी सभी भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण करते हैं । यहाँ भी श्री कृष्ण भक्ति परंपरा के
सभी त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं । विशेष रूप से शरदपूर्णिमा का पंचदिवसीय कार्यक्रम भव्य रूप में मनाया जाता है । तब यह संपूर्ण स्वरूप बगल में स्थित 'रास मण्डल' में एक विशाल शोभा यात्रा के साथ ले जाकर पधराया जाता है । जहाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पंचदिवसीय शरदपूर्णिमा महोत्सव संपन्न होता है । दूर-दूर से आये हुए विद्वान वक्ता धर्मोपदेश करते हैं एवं विभिन्न कलाकारों की मण्डलियाँ परंपरागत रास, नृत्य आदि प्रस्तुत करती हैं ।
ब्रह्ममुनियों के स्मृति स्थल
महामति श्री प्राणनाथ जी के कुछ अनन्य भक्त ब्रह्ममुनियों ने स्मृति रूप में सदा अपने धामधनी के निकट रहने की इच्छा जाहिर की थी, वे चाहते थे कि उनकी सेवायें सदा महाप्रभु के चरणों में अर्पित रहें इसलिये उन्होंने ब्रह्मचबूतरे पर ही अपनी उपस्थिति मानी है । उनका यह विश्वास जन विश्वास में परिणत होकर इन गुमटियों के रूप में अक्षुण्ण है । इन स्मृति स्थलों में हम महाप्रभु के उन अनन्य शिष्यों को आज भी स्मरण करते हैं, स्वामी लालदास जी, स्वामी मुकुंद दास जी (इन्हें नवरंग स्वामी भी कहते हैं) सुशीला महारानी (मझली रानी) एवं महाराज मर्दन सिंह । इस प्रकार ब्रह्म चबूतरे की परिक्रमा में ये स्मृति स्थल (गुमटियाँ) सुनिश्चित हैं, जहाँ प्रतिदिन महाप्रभु के थाल भोग के पश्चात प्रसाद पहुंचाया चाया जाता है ।
आशीर्वाद का प्रतीक श्री पंजा साहब जी
ब्रह्ममुनी श्री लक्ष्मीदास जी का चमत्कारी कड़ा
मुक्तिधाम श्री 5 पद्मावतीपुरी धाम पन्ना में श्री गुम्मट जी मंदिर के पश्चिम में लगा चमत्कारी कड़ा ब्रम्हमुनि श्री लक्ष्मीदास जी महाराज का है । जिसे वह अपनी कलाई में धारण करतें थे ।
श्री लक्ष्मीदास (लच्छीदास) महाराज मेंड़ता राजस्थान के रहने वाले एक प्रतिष्ठित नगर सेठ थे, अंनत श्री महामति प्राणनाथ जी ने मेड़ता पदार्पण करने पर इनको अखण्ड ज्ञान देकर इनकी आत्मा जाग्रत की, ज्ञान के वशीभूत हो आप घरवार छोडकर महामति जी के साथ पन्ना तक आये । इनके पास एक पारसमणी थी, जिसे घर से निकलते समय इन्होने झोली में डाल ली थी ।
पन्ना आने पर इनके दिल में तीव्र इच्छा हुई कि क्यों न इस मणी के द्वारा महामति जी का स्वर्ण मंदिर बनवाकर नाम अमर कर लें । अपनी आंतरिक इच्छा जाहिर करते ही त्रिकालदर्शी महामति श्री प्राणनाथ जी ने कहा कि आगे समय ऐसा आयेगा कि लोग विशुध्द भावना से हीन हो जायेगे । अत: इसकी आवश्यकता नहीं और उन्होने पारसमणी को लच्छीदास महाराज से लेकर किलकिला कुण्ड में फेंक दी ।
यह देख लच्छीदास जी दु:खी हो कहने लगे कि यह दुलर्भ मणी अब कैसे प्राप्त होगी, यह देख महामति श्री प्राणनाथ जी ने अपने आसन का एक कोना उठाते हुए बोले कि तुम्हे जितने पारस पत्थर
चाहिये उतने ले लो । वहॉ अनेको पारसमणी पड़ी थी । यह दृश्य देख लच्छीदास जी कह उठे क्षमा क्षमा क्षमा हे प्राण को नाथ ! मैं आपके चरणो में रहता हुआ आपके स्वरूप की पहचान न कर सका, मुझे अपनी एक पारस मणी का घमण्ड था कि स्वर्ण मंदिर बनवाऊॅगा, लेकिन आपने आज मेरे ह्रदय चक्षु खोलकर उध्दार कर दिया । महामति जी ने कहा तुम्हे नाम यश चाहिये था, अत: अपने वाह में पहना हुआ यह लौह कड़ा उतार दो । आज्ञा पातें ही लच्छीदास महाराज ने कड़ा उतार कर महामति जी के आगे रख दिया । तदुपरांत महामति जी ने अपने हाथ से स्पर्श कर श्री लालदास जी महाराज से कहा कि इसे मंदिर के पीछे लगा देना । यह त्रैताप नाशक जगत जीवों का सुख शांति दायक सिध्द होगा । महामति श्री प्राणनाथ जी के स्पर्श मात्र से ही कड़े में अद्भुत शक्ति का संचार हुआ । आज भी जो कोई इस कड़ें को नेत्र में लगातें या पवित्र जल धुप दीप में स्नान कराकर कर ग्रहण तें है तो उनके सभी दुख दूर होते है । यह स्वंय सिध्द है ।
निजानंदाचार्य सद्गुरु धनी श्री देवचन्द्र जी मंदिर
अनंत श्री महामति श्री प्राणनाथ जी अपने धर्म अभियान में श्री निजानन्दाचार्य सतगुरू धनी श्री देवचन्द्र जी महाराज (सन् 1581 – 1659) की गादी लेकर श्री 5 पदमावतीपुरी आए थे। जिसकी सेवा का भार रामनगर में ब्रम्हमुनि श्री जयंति काका को सौंपा था वह भावना पूर्वक पूजा करते थे उसी मूल गादी की सेवा इस मंदिर में होती है। कालान्तर में मंदिर का भव्य रूप से निर्माण ब्रम्हमुनि सेठ श्री भूषणदास जी धामी द्वारा किया गया इसके पश्चात मुम्बई निवासी सेठ श्री लालजी यादव जी डूगरसी ने उद्धार करवाया सन श्री दाना भाई भाटापारा वालों ने हाल बाकुडा निवासी श्री लाल जी राजा प्रभारी श्री चिमनलाल जी को प्रेरित कर विस्तृत रूप देकर नवीन मठ का निर्माण कराया ।
महारानी श्री बाईजूराज जी का मंदिर
समस्त त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं । पन्ना परमधाम, श्री 5 पद्मावतीपुरी धाम या मुक्तिपीठ निजानंद संप्रदाय का सबसे बड़ा तीर्थ है । जन विश्वास है कि यहाँ पूर्णब्रह्म श्री कृष्ण और उनकी शक्ति स्वरूपा श्यामा महारानी साक्षात विद्यमान हैं इसलिए इस परिक्षेत्र में उनकी अलग-अलग स्थापना है, मंदिर हैं और सेवापूजा है । इस क्षेत्र के बाहर जहाँ कहीं भी निजानंद संप्रदाय के मंदिर जो श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर के रूप में जाने जाते हैं, स्थापित हैं- वहाँ सम्मिलित रूप से श्री युगलस्वरूप जुगल जोड़ी की सेवा पूजा होती है ।